Monday, 17 December 2012

मुझे अँधेरा पसंद है। -1 ( The Traveller and the Magician )

इस रास्ते को भूख लगी,
तोह  बेचारा खाना खाने चला आया,
निम्बू निचोड़, प्यास और किशमिश बिखेर,..खाली ज़िन्दगी थोड़ी सी ,
पर फिर से भूखी ही रह गयी ज़िन्दगी थोड़ी सी।

कई कीमतें यहाँ सवार करती है,
कए राज  यहाँ मोती बन चिप जाते है, और सूरज किरण संग यहाँ वहां घुमा करते है,
अनपढ़ गवार भी येही राह है,
तोह पोथी पंडित विद्वान् भी येही राह है,
गरीब फ़क़ीर भी येही राह है,
और पैसों से छलका  प्याला भी येही राह है,


पानी भी इसी राह में चिप है,
और येही रास्ता पानी में चिप है,
कही कोई आस बन लावारिस यहाँ पड़ा है ये रास्ता ,
तोह कोई लोकप्रिय भी है येही रास्ता,..

रास्ता सभी ऒर से गुजरता है,
और सभी को इसी राह  से गुजरते है।
कहानी अधूरी भी येही रास्ता, कहानी पूरी भी येही है रास्ता।

कही नयी आशाए है ये रास्ता, तोह सारे पुर्नाविरामों का जनाज़ा भी येही रास्ता है।।।
ज़िन्दगी ,..
ज़िन्दगी है ये रास्ता,.. ये रास्ता है ज़िन्दगी।।।।





Tuesday, 30 October 2012

PASSION HIGH DEFINITION.....

काया तेरी कश्मकश ,..तेरे रूप का अम्बार लगे,
होश उड़ा दो  तुम मेरे ,. तुम पे जान निसार हो,
 कमर पर से पसीना छलके,
दृश्य बड़ा मनमोहक लगे,
रोशिनी के स्पर्श हो उस कमर पर, मन मेरा उतेजित हो,
खो जाऊ तेरे गीत-न्रित्य में,
और भूल जाऊ ये दुनिया सारी।

आँखों में तो चमत्कार बसा,
तेरी आखोँ का नशा मेरी आखों से छलका ,
और वो काले घटादार केश,...मुक्त होते ही मदहोश मखमली अँधेरा सजा।
सुल्जाते वो लटाए सारी ,.मेरे हाथों ने नया करतब खोजा,.
बस निकती रहे दिन-रात तेरी रूह और में बनु राख,..
युही खोता  जाऊ तेरे तन-बदन में,
और भूल जाऊ ये दुनिया सारी।

आग लगी मेरे नुमाइसों में,..स्पर्श तेरा होते ही,
जान निकल जाती सारी,
सासों में साँस मिलते ही, साँस सिर्फ तेरी रह जाती।
तेजोमय चेहरा तेरा रूप-रूप सुवर्ण अम्बार,
पाने की इच्छा मुजम  होती रहे,
तुझे भरम-भार।

शायद येही जीवन-संग तेरा मधुर लगता,
वरना  बाकी दुनिया चले, लगे भवर का जंजाल ,
तेरे नाम में छिपा दे मुझे, तेरे आघोश में डूबा रहू ज़िन्दगी या मौतभर ,
खो जाऊ  तेरे ख्वाब-ख्यालों  में

जीऊ , मरू, या अमर हो रहू क़यामत तक,.
और भूल जाऊ,.....

Tuesday, 23 October 2012

ताज महल

किमत उसकी हवाओं ने चुकाई,  
आज तक दीवारों में माथा फोडती है।
पानी के मोल से बहा है पसीना ,..  और फिर लहू,..
इसकी किमत क्या है ?...                     
रास्ते के बड़े बड़े पत्थरों को तोड़ मुलायम बनाया,
फिर पानी मिट्टी जोड़, अमर बनाया,
परिश्रम, मौत से बनाया ये नजराना
इसकी किमत क्या है ?...



बहोत हाथ लगे इसको सफ़ेद बनवाने,
बहोत साल लगे इसको युगों युगों तक फ़ैलाने,
आत्मा बिठा रख्ही है , इस संगमर्मर के जहां में
इसकी कीमत क्या है ?...




दिन न देखा, रात न देखी
देखि न जिंदगी, मौत न देखि,


आव  न देखा, ताव न देखा,....न देखा घड़ियाल में घुमता रेत का सितारा ...

किमत इसकी  क्या है ???

Thursday, 23 August 2012

Mind Before Matter - I

काली हवा का बुदबुधा ,
घूमते हुए उस अवकाश से यहाँ आया
sulphur dioxide , hydrogen peroxide, nitro का मिक्स्तुर था।
खूब उसे घोला पिटा भूना और तला गया।

फिर उस से भाप निकली, खो गयी कही,
फिर आसमा बना ये धरती बनी और समय ने परिभाषा बनाई ,
 खुद भी बन गया
समय के अधिकार की सीमा तै हुई।
और फिर सब खो गया, रहा तो सिर्फ कुछ नहीं...परी आई और चली गयी,
अंधकार और उजाला सब सफ़ेद था,
और कही  दिशा का निर्देश नहीं था।
सोमम रात और दिन,सुबह और शाम, नींद और ख्वाब सब कुछ ढूंढते,ढूंढते बुड्ढा हो गया,
फिर  मनुष्य का जनम  नहीं किस अधिकार में हुआ.....

Wednesday, 11 July 2012

Kinjal - For A Friend

तेज़ सी रोशिनी चेहरे में समाई हुई,.
जैसे चश्मे से कोई पढाई की मूरत, देख रही
 ऐसी थी सुंदरता और कर्तब कथक था तेरा नक्षीकाम
पर दिल में तेरी सचाई बसी,
और मासुमियत आज भी तेरा साथ निभा रही है।

खुशहाल मुस्कान,.किंजल  जिसका नाम,
दुसरे लड़कियों से आगे बने जिसने अलग अपनी पहचान।
कला की थी वो कदरदान,
भरतनाट्यम सिख उन्नत की संस्कृति जय भारत,
अब करती है वो विद्या दान
बढ़ा रही है भारतीय संस्कृति की शान।

मुजुमदार थे, दीवान खाने में बैठे ज़मीनों का हिसाब चख लिया करते थे,
पर नाता पड़ा जोशी से इनका
अब लोगों के भविष्य सफाया करते है,
या फिर जोशी मुजुमदार बने सब्बों लूट लेते है।

पर एक अच्छे दोस्त सी - दोस्ती आप  निभाती,
दोस्तों के सुन्हेरे  रंग में खूब घुल मिल जाती।
मज़े में रहना, यु ही खुशमिजाज रहना -
येही दुआ है हमारी -
सदा बढाओ जीवन में आगे तुम कदम -
एक झापट  पड़ेगी अगर भूल कर भी भूल गयी
सारे दोस्त और दोस्तों के शहंशाह -  हम।

Friday, 25 May 2012

Rista Wohi


इंतज़ार करता हु गुज़रे वक़्त का,. बीते मौसम के भीगे बारिश का।  
ठण्ड भी हर साल नयी आती है,. सूरज वोही होता है और गामी भद जाती है .
पेड़ों को टटोलने पार मुझे वोह पेड़ मिला,. जिसके बने कागज़ में लिखा, मेरा मन छिपा है .
जिसकी कोई कल्पना भी नहीं की हो। 
कैसा ये रिश्ता है , कोई कैसे मुझसे जुड़ गया।

चलते चलते एक पंची को देखा,इस ईमारत की बरसाती में बैठा है,
उसने वही घोसला भी बनाया और नए जीवन की शुरुआत भी हो चुकी थी,
वह रे नसीब देनेवाले, ईमारत खिली बिस्मार खड़ी है  और भाग्य इसका  उपभोग सयाना 
कैसा ये रिश्ता है, कोई इस ईमारत को बनता है। और कौन यहाँ रहता है।

फिर सोचा की आज से पहले इस शारीर में कोई और रहता होगा,
मेरी भटकती रूह को इसमें भर दिया होगा।
फिर इस शारीर को कितने लोगों से मिलना था, बनानेवाला भी होशियार है.
कैसा ये रिश्ता हिया, मिलता शारीर को है, 
रिश्ता रूह से करवा दिया।

लम्हा एक ही होता है, लोग इतने सारे, इन्ही लम्हों में कितने सारे करम होते है।
कैसे हिम इनमे गुथ्थे  है, कोई किस फैसले का कैसे कर्ज़दार बन जाता है।
कैसा ये रिश्ता है, करम कोई और करता है ,. और फल किसे चख्वा दिया।